गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

क्या आप मेरे साथ तुलसी के राम का नमन नहीं करेगें ?

 किसबी ,किसान -कुल ,बनिक,भिखारी, भाट ,
चाकर ,चपल नट, चोर,  चार,  चेटकी  
पेटको पढ़त,गुन गढ़त ,चढत गिरि ,
अटत गहन -गन अहन अखेटकी 
ऊंचे -नीचे करम ,धर्म -अधरम  करि
पेट ही को पचत ,बेचत बेटा- बेटकी 
'तुलसी ' बुझायी एक राम घनश्याम ही ते ,
आगि बड़वागिते बड़ी है आगि पेटकी
(तुलसी कहते हैं कि श्रमिक ,किसान ,व्यापारी ,भिखारी ,भाट ,सेवक,चंचल नट ,चोर, दूत और बाजीगर अर्थात हम सभी इस कलियुग में पेट के लिए ही सब कर्म कुकर्म कर रहे हैं -पढ़ते ,अनेक उपाय रचते ,पर्वतों  पर चढ़ते और शिकार की खोज में दुर्गम वनों का विचरण करते फिरते हैं ..सब लोग पेट ही के लिए ऊंचे नीचे कर्म तथा धर्म -अधर्म कर रहे हैं ,यहाँ तक कि अपने बेटे बेटी को बेच तक दे रहे हैं (दहेज़ ?) ----अरे यह पेट की आग तो समुद्रों की बडवाग्नि से  भी बढ गयी है ;इसे तो केवल राम रूपी श्याम मेघ के आह्वान से ही बुझाया जा सकता है )

अब आगे पढ़ें 


गिरिजेश जी  ने पिछले दिनों तुलसी की कवितावली से कुछ उद्धरण दिए थे जिसमें मध्ययुगीन इस संत महाकवि के जीवन के कुछ निजी पहलू अनावृत हुए थे-आश्चर्यजनक संयोग  यह कि इन्ही दिनों मैं भी कवितावली पढ़ रहा था और तुलसी के जीवन के कुछ भावपूर्ण पहलुओं को समझने का अच्छा -बुरा अवसर मिल रहा था ...गिरिजेश जी से मैंने वायदा किया था कि कुछ उल्लेखनीय मैं भी इस ब्लॉग पर पोस्ट करूंगा -अनुज अमरेन्द्र का आग्रह भी यही था ,कवितावली को पढ़ते हुए लगता है कि महाकवि ने जैसे उसे कुछ आत्मकथात्मक बना दिया हो ...जगदीश्वर चतुर्वेदी के तुलसी विवेचन की एक बात मुझे मुझे बहुत सटीक लगी कि तुलसी का राम के प्रति अनन्य प्रेम किसी धर्मग्रन्थ या देवोपासना से प्रेरित नहीं है  बल्कि दुःख और दरिद्रता से उद्भूत  दैन्य की ही एक तार्किक परिणति है!

दिन अनुनैन्दिन अनेक कष्टों और असह्य दुखों को भोग रही मानवता के त्राण का  क्या कोई सार्वकालिक और सार्वजनींन  समाधान सूत्र है ? तुलसी ने निरंतर सोचा विचारा  होगा और अनुभव से इसी मुकाम पर  पहुंचे और  फिर वहीं ठहर ही गए सदा सनातन  के लिए  -रामहि केवल एक अधारा ! आज दुखों से बिलबिलाती असंख्य जनता के सामने राम से बढ़कर कोई और भरोसा है ? तुलसी ने राम को पुनः आविष्कृत किया और प्राण प्रतिष्ठा दी -वे तो बिसराए हुए से हो गए थे .राम के ही जरिये तुलसी ने मनुष्य मात्र को एक भरोसा  एक आत्मबल और एक आत्मसम्मान का फार्मूला सब एक साथ थमा दिया ...हाथ पसारो तो सबको देने वाले राम के आगे न कि किसी मनुष्य के सामने जो कि खुद दरिद्र है ..जाचक है -उसके सामने हाथ क्या फैलाना ? तुलसी ने लिखने का काम साठ वर्ष की अवस्था से शुरू किया ..साठा सो पाठा-पूरे जीवन के अनुभव से  उन्होंने रचनाकर्म कर देश दींन  दुखिया से अपने विचारों का साझा किया .

मैं तो एक अग्येयी हूँ -अगोनोस्टिक -मगर तुलसी के राम से मुझे भी प्रेम है .मैं भी चाहता हूँ वे मेरी भव  बाधा हरें और इस नश्वर से जीवन को एक सार्थकता  प्रदान करे ..क्या आप मेरे साथ तुलसी के राम का नमन  नहीं करेगें ?
आज पुरुषोत्तम माह का आरम्भ है! 

23 टिप्‍पणियां:

  1. ये तो आप हमसे बिना पोस्ट लिखे ही करवा सकते थे अरे भाई जब आपको नमन तो आपके आराध्य को नमन करने में देरी कैसी ! मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है बाबा नें श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा की उन्हें जनसामान्य की पहुंच में लाया और उनके व्यक्तित्व को मर्यादाओं के आदर्श शिखर पर बैठाया ! यह सत्य है कि दुःख और दीनता में हर मनुष्य संबल के लिए ईश्वर की ओर ताकता है पर उस ईश्वर को ईश्वर के रूप में स्थापित करने वाले का योगदान भी कम महत्त्व का नहीं है इसलिए आदरणीय मिश्र जी श्री राम यानि 'केवल एक अधारा' को प्रणाम करने से पूर्व बाबा को प्रणाम फिर उनके आराध्य और दुखियों की आशाओं के केंद्र बिंदु को प्रणाम !

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  2. तुलसी को समझना हो तो विनय पत्रिका, कवितावली और अमृतलाल नागर का कालजयी उपन्यास 'मानस का हंस' पढ़ना आवश्यक है।
    खल पात्रों के उद्गार 'ढोल गँवार ...' या 'अवगुन आठ सदा उर रहहिं..' जैसी चौपाइयों को लेकर गरियाना और लेख, कविता लिखना हो तो और बात है।
    आप को आश्चर्य होगा कि मैंने रामचरित मानस का नाम नहीं लिया। यह महाकाव्य एक महानाटक है जिसमें खल पात्र भी समूची जीवंतता के साथ चित्रित हुए हैं। 'ढोल गँवार ..' वाली चौपाई गर्ग संहिता के एक श्लोक का अक्षरश: अनुवाद है। श्रीमद्भागवत के भी कई श्लोक अनुवादित हो मानस में आए हैं।..
    सम्भवत: आप तुलसी पर मेरी यह पोस्ट भी पढ़ना चाहें।
    http://kavita-vihangam.blogspot.com/2009/04/blog-post_22.html

    उनके बारे में सोचते मुझे उनकी यह पंक्ति याद आती है - 'चन्दन तरु हरि संत समीरा'

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  3. सिया-राम मय सब जग जानी...
    राम के ही जरिये तुलसी ने मनुष्य मात्र को एक भरोसा एक आत्मबल और एक आत्मसम्मान का फार्मूला सब एक साथ थमा दिया ...हाथ पसारो तो सबको देने वाले राम के आगे न कि किसी मनुष्य के सामने
    शायद हताशा की यही परिस्थितियों ने उस काल को भक्तिकाल बनाया और हमें मीरा, सूर, तुलसी, कबीर, नरसी जैसे संतों की वाणी सुनने को मिली.

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  4. तुलसी का सृजन 60 की अवस्था से नहीं, बहुत पहले से हुआ। हनुमान चालीसा, बरवै रामायण, रामलला नहछू, जानकी मंगल, पार्वती मंगल वगैरह बहुत पहले की रचनाएँ हैं।

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  5. दहेज नहीं 'दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा' अकबर महान(?) के शासन काल में भयानक अकाल पड़ते थे । उस समय यह स्थिति थी कि,
    भले लोग इसलिए कि संतानें भूख से न मरें और स्वार्थी लोग अपना पेट भरने के लिए, उन्हें सचमुच बेच दिया करते थे।

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  6. मैं भी चाहता हूँ वे मेरी भव बाधा हरें और इस नश्वर से जीवन को एक सार्थकता प्रदान करे ....

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  7. बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख. जय श्री राम.

    रामराम.

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  8. God doesn't exist either, or he exsists in everyone (Be it mishra ji, rachna ji, sujata ji, mukti ji, Ali ji, anuj Amrendra and all of us....)

    The other name of God is 'Aastha'. We see God in our trusted ones. We see Tulsi and Rama both in the ones we trust. Our parents are epitome of our trust, hence we see God in them.

    Sab kuchh vishwaas aur aastha par aadharit hai----"Maano to main ganga maan hun...na mano to behta pani "

    If a friend comes as a guiding light in our needs...he becomes our Charioteer ( Krishna), and Rama .

    Corelating Dwapar, Treta and Kaliyug , i define 'God' as mutual trust between the two and among us, in my humble opinion.

    As far as 'Haath failakar maangna ' is concerned....Why to ask for more? He has blessed us with so much already. Avail that first.

    Hey Ishwar ( my friends and acquaintances)..aapko shat shat naman !

    Hare Krishna !, Hare Rama !

    My Charoiteer !, My Friend !

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  9. @जील ,पूरी समग्रता और ब्लॉग बोध के साथ आप यहाँ उपस्थित हुयी हैं देवि,आपके रामत्व को नमन!

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  10. आपदं अपहर्तारं दातारं सर्व संपदां।
    लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो-भूयो नमाम्यहं॥

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  11. पुरुषोत्तम मास की शुरुआत अच्छी है ...बाबा तुलसी को याद करते हुए ...
    शुभ रहे यह मास सभी के लिए ...!!

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  12. ''ट'' का वर्तुल घूर्णन देखते ही बन रहा है उपर्युक्त कवित्त में , भला ऐसे भावों के लिए
    और कौन ध्वनि चुनी जा सकती थी ! ट की लट्टू - धुरी पर समस्याओं की
    गतिमयता को नचा दिया गया है जैसे नाभि - स्थल- उद्भूत - पेटागि !
    अगर किसी जनम के किसी पुण्यवश कभी बाबा मिलें तो बस एक ही चीज
    मांगूंगा - '' बाबा अपने काव्यत्व की अक्षय - गगरिया से बूँद भै हमरे सहस्स्रार
    पै चुवाय दियौ ! जिन्दगी भै रामै-राम करब ! ''
    .
    समय की सीमा से कौन बचा है , सो बाबा के यहाँ भी खटकने वाली चीजें दिख सकती है ..
    पर 'सीमाएं' कम हैं 'शक्तियां' अधिक हैं , वे मूर्ख हैं जो 'सबै धान बाईस पसेरी' समझ
    कर परम्परा की निंदा ही अपना अभीष्ट मान बैठते हैं ..
    तुलसी के राम दीनबंधु हैं , यह निर्विवाद है !
    .
    कुछ किताबों की चर्चा गिरिजेश भाई ने की है , मैं फिलहाल उसमें एक किताब को और
    जोड़ना चाहता हूँ - विश्वनाथ त्रिपाठी जी की 'लोकवादी तुलसीदास' .. इसके सारे अध्याय
    एक नई दृष्टि देते हैं , मुझे बड़ी प्रिय है यह पुस्तक !
    .
    @/@जील ,पूरी समग्रता और ब्लॉग बोध के साथ आप यहाँ उपस्थित हुयी हैं देवि,आपके रामत्व को नमन!
    --------- पूर्णतया सहमत हूँ इस विचार-राशि और भाव-राशि से !

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  13. बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख...सबकी ही भवबाधा हरें ,राम और इस नश्वर जीवन को सार्थक बनाने में सहायक हों...यह मास सभी के लिए शुभ हो....आज मलयाली और तमिल लोगों के नववर्ष का पहला दिन भी है...so Happy Vishu too

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  14. आप तुलसी भी हैं और राम भी. आपको नमन.

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  15. मैं व्यक्तिगत रूप से ईश्वर में बिल्कुल विश्वास नहीं करती, पर मुझे मानवता में आस्था है...मानव मूल्यों पर विश्वास. यदि ईश्वर इनका प्रतिनिधि है, तो ईश्वर को प्रणाम.
    जहाँ तक तुलसीदास की भू्मिका का प्रश्न है, उन्होंने ऐसे समय में राम को एक आदर्श के रूप में जनमानस के समक्ष उपस्थित करके मानव मूल्यों के प्रति आस्था की पुनर्स्थापना की थी, जब सामाजिक परिस्थितियों के चलते ये मूल्य पतन के स्तर पर पहुँच रहे थे. तुलसी के इस योगदान के कारण उन्हें प्रणाम.

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  16. तुलसी के राम मुझे प्रेरित करते हैं । जब भी पढ़ता हूँ, कुछ नया सीखता हूँ ।

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  17. अली भाई से सहमत हूँ। तुलसी और वाल्मिकी न होते तो शायद राम भी न होते।

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  18. अमरेन्द्र की टिप्पणी से टीपना चाहता हूं -

    @/@जील ,पूरी समग्रता और ब्लॉग बोध के साथ आप यहाँ उपस्थित हुयी हैं देवि,आपके रामत्व को नमन!
    --------- पूर्णतया सहमत हूँ इस विचार-राशि और भाव-राशि से !

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  19. मैं भी चाहता हूँ वे मेरी भव बाधा हरें और इस नश्वर से जीवन को एक सार्थकता प्रदान करे ....

    जय श्री राम

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  20. आपका यह आलेख बहुत ही ज्ञानवर्धक लगा....आपको व इस लेख को नमन...

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  21. गिरजेश जी, अमरेन्द्र जी,zeal आदि ने इस पोस्ट में चार चाँद लगा दिया है । मैं भी कुछ मूड बना रहा था कि बिजली चली गई...
    सभी का आभार।

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  22. जिस कविता के द्वारा बाबा तुलसी भगवान राम का गुण गान कर रहे है उसमे निर्बल के बल केवल राम का नैराश्य भाव भी छिपा है सहित्य समाज का दर्पण होता है और सामाजिक तत्कालीन विषमताओ ्के कारण ही इन कालजयी रचनाओ की उत्पत्ति हुई
    कल्युग केवल नाम अधारा आज भी प्रासंगिक है
    आभार इसी बहाने राम का नाम याद दिलाने के लिये वरना आपके पास तो काम ही काम है

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