सोमवार, 28 जुलाई 2008

मौका मिले तो आप भी मानस का खल प्रसंग पढ़ें !

अद्भुत है मानस का खल प्रसंग भी !जहाँ बाबा तुलसी की काव्यात्मक क्षमता अबाध विस्तार पाती है ।
"बहुरि बन्दि खल गन सतिभाएँ जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ "
मगर तुलसी फिर भी सशंकित ही हैं -
बायस पलिहें अति अनुरागा होहिं निरामिष कबहूँ कागा

खल वन्दना की उसी परम्परा में कल एक जाने माने चिट्ठाकार का 'एनामिनासाय नमः ' पढ़कर बरबस ही होठों पर मुस्कराहट तिर आयी ।
दरअसल ऐसे खल कामियों का वंदन ही करना चाहिए जिससे आप आपना काम निर्विघ्न बिना खलल के पूरा कर सकें ।
पर तब भी बाज तो आयेंगे नही ...पर क्यां करे इन्होने जब तुलसी बाबा तक को नही छोडा तो मैं किस खेत का मूली हूँ ।
आप भी ऊपर के लिंक पर जाकर थोडा आनंद उठा सकते हैं .अगर मनोरंजन का आअज कोई दूसरा विकल्प न हो .....

3 टिप्‍पणियां:

  1. आप भी ऊपर के लिंक पर जाकर थोडा आनंद उठा सकते हैं .अगर मनोरंजन का आअज कोई दूसरा विकल्प न हो .....

    achcha kiya jo bataa diya ki aap naari ango kaa vivran manoranjankae liyae kartey haen . yahii to us annonymous nae bhi kehaa haen jisko aap khal keh rahey haen .aur tulsidaas bannaa chahtey haen kaam sutr rach kar . kyaa sambhav haen yae

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  2. "बायस पलिहें अति अनुरागा होहिं निरामिष कबहूँ न कागा," सच ही कहा है. और हाँ, आपकी टिप्पणियों और पिताजी की कविता की पंक्तियों के लिए धन्यवाद. पूरी कविता ही प्रस्तुत करें तो और कई मित्रों को भी साहित्यावाचन का लाभ होगा.

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